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अदल-बदल :: ६५
 

चारा नहीं रह जाता।

'यह आप जानें, मैं तो आपसे अनुरोध करती नहीं।'

'आज रात्रि में आप क्लब अरश्व पधारिए। सेठ साहब का भी भारी अनुरोध है।'

'अच्छा आऊंगी'---मायादेवी ने एक कटाक्षपात किया, और चल दी।

डाक्टर कृष्णगोपाल को पत्नी विमलादेवो एक आदर्श हिन्दू महिला थीं। वे अधिक शिक्षित तो न थीं, परन्तु शील, सहिष्णुता परिश्रम और निष्ठा में वे अद्वितीय थीं। कृष्णगोपाल के साथ विमलादेवी का विवाह हुए बारह साल हो गए थे। इस बीच उनकी तीन सन्तानें हुई, जिनमें एक पुत्री सावित्री नौ वर्ष की जीवित थी। दो पुत्र शैशव अवस्था ही में मर चुके थे। जीवन के प्रारम्भ में ही सन्तान का घाव खाने से विमलादेवी अपने जीवन के प्रारम्भ ही में गम्भीर हो गई थीं। वैसे भी वह धीर-गम्भीर प्रकृति की स्त्री थीं। वे दिनभर अपने घर-गृहस्थी के धंधे में लगी रहतीं। दो सन्तानों के बाद इसी पुत्री को पाकर विमलादेवी का मोह इसी पुत्री पर केन्द्रित हो गया था। इससे वह केवल पुत्री सावित्री को प्यार ही न करती थीं, वरन् उसके लिए विकल भी रहती थीं। पुत्री के खराब स्वास्थ्य से वह बहुत भयभीत रहती थीं।

डाक्टर कृष्णगोपाल ने जब विमलादेवी को लेकर अपनी गृहस्थी की देहरी पर पैर रखा, तब तो उन्होंने भी पत्नी को खूब प्यार किया। पति-पत्नी दोनों ही आनन्द से अपनी गृहथी चलाने