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६६ :: अदल-बदल
 


लगे। वे खुशमिजाज, मिलनसार और परिश्रमी थे, इससे उनकी प्रैक्टिस खूब चली। परन्तु रुपये की आमदनी ने उनके चरित्र में दोष पैदा कर दिया। वे घर के सम्पन्न पुरुष न थे। साधारण घर के लड़के थे। पिता एक साधारण सरकारी क्लर्क थे। उन्होंने बड़े यत्ल से पुत्र को शिक्षा दिलाई। कृष्णगोपाल अपने पिता के अकेले ही पुत्र थे। इससे पिता उन्हें चाहते भी बहुत थे। माता का बचपन ही में देहान्त हो गया था। इससे भी पिता का पुत्र पर बहुत प्रेम था। परन्तु अपनी अवस्था सम्हाल लेने पर जब उनकी डाक्टरी खूब चलने लगी, उन्होंने पिता की कुछ भी खोज-खबर नहीं ली। बेचारे ने अपने देहात के घर में, बहुत दिनों तक एकाकी जीवन व्यतीत करके परलोक प्रयाण किया।

इधर हाथ में रुपया आते ही डाक्टर कृष्णगोपाल को चार दोस्तों की मण्डली मिल गई। उसमें कुछ लोग दुष्चरित्र थे। उन्होंने डाक्टर को ऐय्याश बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। इससे दिन-दिनभर डाक्टर घर से बाहर रहने लगे और उनकी आय का बहुत-सा भाग इस मद में खर्च होने लगा।

विमलादेवी ने पहले तो इधर ध्यान नहीं दिया। पर धीरे-धीरे उसे सभी बातें ज्ञात होने लगीं। पहले डाक्टर छिपकर शराब पीते थे, बाद में पीकर मदमस्त होकर घर आने लगे। घर लौटने में उन्हें विलम्ब होने लगा। कभी-कभी तो विमलादेवी को पूरी रात-रातभर उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ी। बहुत बार विरोध भी करना पड़ा। इससे धीरे-धीरे पति-पत्नी में संघर्ष का उदय हुआ। महाभारत छिड़ जाता और दो-दो दिन तक घर में भोजन न बनता। परन्तु इसमें सारा कष्ट विमलादेवी को ही भोगना पड़ता। डाक्टर बाहर चार दोस्तों में जाकर खूब खाते-पीते और मस्त रहते थे। धीरे-धीरे डाक्टर में आवारागर्दी बढ़ती ही गई। अब उनका मन पुत्री से भी हट गया। संतान-स्नेह का जैसे उनके