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७१::अदल-बदल
 

काम-तृप्ति का आभास ही प्रेम है ऐसी बात नहीं है। देखिए, छोटे शिशुओं पर माता का प्रेम होता है, भाई-भाई में प्रेम होता है, यह प्रेमतत्त्व कामतत्त्व से बिलकुल ही भिन्न एक वस्तु है। यह भी सम्भवहै कि प्रेमतत्त्व कायम रहे और कामतत्त्व कायम न रहे। यह भी संभव है कि कामतत्त्व कायम रहे पर प्रेमतत्त्व कायम न रहे।'

'वाह, यह आपने खूब कहा। अजी साहेब, आप ज़रावात्स्या- यन के कामशास्त्र को पढ़ें या हवेलिक एलिस के 'साइकोलॉजी ऑफ सेक्स को पढ़ें तो ऐसा कदापि न कहेंगे।' सेठजी ने बड़े जोश के साथ कहा। वे मायादेवी पर अपनी विद्वत्ता की धाक जमाना चाहते थे। मायदेवी चुपचाप मुस्कुरा रही थीं।

उन्होंने कहा-'तो फिर डाक्टर साहेब, आप पढ़ डालिए इन ग्रन्थों को इस बुढ़ापे में।'

डाक्टर ने ज़रा-सा मुस्कराकर एक सिगरेट निकालकर जलाया और धीरे से कहा-'बहुत कुछ तो पढ़ चुका हूं। मेरे दोस्त इन ग्रन्थों को जितना पूर्ण समझते हैं वे उतने नहीं हैं। सच पूछा जाए तो वात्स्यायन के ग्रन्थ की महत्ता तो उसकी प्राचीनता ही में है। आधुनिक कामशास्त्र में और भी नवीन महत्त्वपूर्ण बातों की खोज की गई है, जिनकी चर्चा उपर्युक्त दोनों ग्रन्थों में नहीं है। फिर, यह तो आप स्वीकार ही करते हैं कि पुरुष-पुरुष में स्त्री-स्त्री में, मनुष्य और पशु में, मनुष्य और जड़ में भी प्रेम हो सकता है, उससे क्या यह बात प्रमाणित नहीं हो जाती कि काम और प्रेम दोनों पृथक वस्तु हैं।'

'किन्तु मीराबाई ने मूर्ति से प्रेम किया और बाद में उस प्रेम की शक्ति से उस जड़मूर्ति को चैतन्य बना लिया।' सेठजी ने कहा।

'अफसोस है कि आप इस अत्यन्त भूठी दकियानूसी बात पर विश्वास करते हैं। कृपया इस बात का ध्यान रखिए कि एक