उसे मुंह दिखाई, पैर पड़ाई आदि अवसरों पर भी बहुत कुछ भेंट मिलती है, वह भी उसीका धन होना चाहिए और यह रकम सुरक्षित रूप से उसके नाम कहीं जमा रहनी चाहिए जो आड़े वक्त पर काम आए। या तो उसकी पेड-अप पालिसी खरीद ली जाए या और कोई ऐसी व्यवस्था कर ली जाए जिसमें उस रकम के मारे जाने का भय ही न हो।'
मायादेवी ने डाक्टर को बहुत-बहुत साधुवाद देकर कहा---'ब्रेवो डाक्टर, इस योजना को अवश्य अमल में लाना चाहिए।'
'जरूर, जरूर, परन्तु मायादेवी, अभी तो इस सम्बन्ध में बहुत-सी गम्भीर बातें हैं, मसलन देश की उन्नति में स्त्रियों का कितना हाथ है, क्या कभी किसीने इस पर भी विचार किया है?'
'नहीं, आप इस सम्बन्ध में क्या कहना चाहते हैं?' सेठजी ने कहा।
डाक्टर ने कहा---'बहुत कुछ। पुरुष चाहे जैसा वीर हो, स्त्री के सामने उसकी वीरता हार खाती है। शास्त्रों में जहां स्त्री को अबला कहा गया है वहां वे चण्डिका भी बन जाती हैं।'
मायादेवी उत्साह से बोलीं---'बेशक। जनाब, स्त्रियों की प्रकृति जल के समान है, जो शान्त रहने पर तो अत्यन्त शीतल रहता है, परन्तु जब उसमें तूफान आता है तो वह ऐसा भयंकर हो जाता है कि बड़े-बड़े भारी जहाज भी टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।'
'मेरा तो खयाल ऐसा है, कि स्त्रियां यदि सुधर जाएं तो देश की बहुत उन्नति हो।'
'अजी आप यही सोचिए कि वे बच्चों की माताएं हैं। उन्हें ढालने के सांचे हैं, वे बच्चों की गुरु हैं, यदि वे योग्य न होंगी तो बच्चे योग्य हो ही नहीं सकते। बच्चे यदि अयोग्य हुए तो कुल