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पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/७५

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अदल-बदल :: ७७
 

न्याययुक्त भी है।'

डाक्टर ने कहा---'मायादेवी सत्य कहती हैं।'

'खैर, यह हुई एक बात। दूसरी बात क्या है, वह भी कहिए।'

'दूसरी बात यह कि विवाह के समय जेवर और नगदी के रूप में ससुराल से भी उसे कुछ मिलना चाहिए। यह धन उसी का ही हो। जैसे दहेज का धन पुत्री का धन है उसी प्रकार ससुराल का यह 'दान' स्त्री का धन है। इसे उससे कोई अपहरण न करे। दहेज की भांति आजकल जेवर आदि की ठहरानी को भी निन्द- नीय ठहराया जाता है। परन्तु उसका कारण यही है कि लड़की का उस धन पर कोई अधिकार नहीं होता। यह तय होना चाहिए कि जो जेवर, नगदी अधिक-से-अधिक ससुराल वाले अपनी सामर्थ्य के अनुसार दे सकते हैं, वह उस स्त्री का धन हो चुका और वह विधवा होने पर उसीके द्वारा अपना गुजर-बसर कर सकती है। अतएव अधिक-से-अधिक यह हो सकता है कि फिर ब्याह होने की हालत में ससुराल का यह धन उसे लौटा दिया जाए। परन्तु यदि स्त्री की आयु पच्चीस साल से ऊपर हो चुकी हो, एकाध-संतान भी उसकी हो गई हो, खाने-पीने और सुख- सम्मान से रहने की भी सुविधा हो तो वह दूसरा ब्याह न करे।'

'यह हुई दूसरी बात, विचारने योग्य है। अच्छा, तीसरी बात क्या है?

'तीसरी बात यह है कि विवाह के समय कन्यादान में सगे-सम्बन्धी, इष्ट-मित्र बहुत कुछ कन्या को नगदी अर्पण करते हैं। विदाई के समय में भी ऐसा ही होता है। रिवाज के अनुसार यह सब रकम दूल्हा महाशय हड़प जाते हैं, परन्तु वह रकम भी स्त्री-धन होना चाहिए।'

'बस, या और कुछ।'

'हां, हां, अभी तो कई मद हैं। बहू जब ससुराल आती है, तब