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८९::अदल-बदल
 

एक उदार विचारों के तथा शान्त प्रकृति के सज्जन सद्गृहस्थ थे, इसीसे उन्होंने अपनी पत्नी को इतनी स्वतन्त्रता भी दे रखी थी। उसका परिणाम ऐसा घातक होगा-जिससे उनकी गृहस्थी ही में आग लग जाएगी, यह उन्होंने नहीं सोचा था। इधर कुछ दिन से मायादेवी के व्यवहार, आचरण उनके लिए असह्य होते जा रहे थे-परन्तु वे यह सोच भी न सके थे कि एकमात्र अपने पति और पुत्री को इस भांति निर्मम होकर छोड़कर चली जाएगी।

प्रातःकाल होने पर जल्दी-जल्दी वे अपने नित्य-कर्म से निवृत्त होकर प्रभा को कुछ पथ्थ-पानी दे और तसल्ली दे मालती देवी के मकान पर पहुंचे। मालती से मुलाकात होने पर उन्होंने कहा—'सम्भवतः मेरी पत्नी मायादेवी आपके यहां आ गई है। 'कृपया जरा उसे बुला दीजिए, मैं उसे घर ले जाने के लिए आया हूं।'

मालतीदेवी ने जवाब दिया-श्रीमती मायादेवी आपसे मुलाकात करना नहीं चाहतीं, पत्नी की हैसियत से आपके साथ रहना नहीं चाहती, आपने उनपर अत्याचार किया है। अतः आजाद महिला-संघ के नियम के अनुसार हमने उन्हें आश्रय दिया है, और मुझे आपसे यह कहना है कि आप उनकी मर्जी के विरुद्ध न मिल सकते हैं, न उन्हें जबरदस्ती साथ ले जा सकते हैं ।'

'परन्तु वह मेरी है, मुझे उससे मिलने तथा अपने साथ उसे घर ले जाने का अधिकार है।'

'तो आप इसके लिए कानूनी चारागोई कर सकते हैं।'

'परन्तु इसकी आवश्यकता क्या है, यह पति-पत्नी के बीच की बात है।'

'सैकड़ों वर्षों के उत्पीड़न के बाद अब इस बात की आवश्य- कता आ ही पड़ी है कि पति-पत्नी के बीच भी कानून हस्तक्षेप