सावधानता-पूर्वक बैठ गया। तब उससे पूछा गया-"चार
तियाँ?" उत्तर में टन-टन करके बारह बार घंटी बज उठी।"छ तिरुक?" पूछते ही अठारह ठोंके घंटी पर पड़े। इसके बाद हेक्टर का मालिक बीस फ़ीट दूर जाकर खड़ा हुआ। पीठ उसने हेक्टर की तरफ़ की और मुँह दीवार की तरफ़। फिर उसने पूछा--"छ चौको?" घंटी ने टन-टन जवाब दिया, चौबीस। इस परीक्षा का फल देखकर भी शंका हुई कि कहीं किसी ढब से इस कुत्ते को इन सब प्रश्नों के उत्तर पहले ही से न सिखला दिए गए हों। इस कारण और भी गहरी और कठिन परीक्षा की ठहरी। परीक्षा लेनेवाले महाशय ट्राओन साहब के पास गए। वह हेक्टर से बहुत दूर खड़े हुए थे। उनके कान में परीक्षकजी ने धीरे से--इतना धीरे से कि दो फ़ीट की दूरी पर खड़ा हुआ आदमी भी न सुन सके--कहा, "पाँच सत्ते?" बस, उनके कान में यह कहना था कि हेक्टर की घंटी ने ३५ ठोंके लगा दिए। अर्थात् प्रश्न को कान से सुना भी नहीं, पर उत्तर दे दिया, और ठीक दे दिया। दिया भी इतनी शीघ्रता से कि ठोंकों का गिना जाना मुश्किल हो गया। इसी तरह जोड़, बाक़ी और गुणा के कितने ही प्रश्न पूछे गए, और सबके उत्तर हेक्टर ने सही-सही दे दिए। दो-एक दफ़े उससे भूलें भी हुई। पर ये भूलें शायद गिननेवालों की ही हों, क्योंकि घंटी
पर ठोंके इतनी शीघ्रता से पड़ते थे कि एक ठोंके को दो अथवा
दो को एक गिन जाना बहुत संभव था।
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अद्भुत आलाप