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अंध-लिपि

गया है। अब भी कभी-कभी इसमें यत्र-तत्र खुदाई होती है, और अजूबा अजूबा चीज़ें निकलती हैं। पांपियाई मानो दो हज़ार वर्ष के पुराने इतिहास का चित्र हो रहा है। दूर-दूर से दर्शक उसे देखने जाते हैं।

ऑक्टोबर, १९११



१८––अंध-लिपि

मनुष्य को परमेश्वर ने जितनी इंद्रियाँ दी हैं, आँख सबमें प्रधान है। आँख न रहने से जीवन भारभूत हो जाता है। बिना आँखों के मनुष्य प्रायः किसी काम का नहीं रहता। एक इंद्रिय के न रहने से, अथवा उसके निरुपयोगी हो जाने से, अन्य इंद्रियों में से एकआध इंद्रिय अधिक चेतनता दिखाने और अपने काम को विशेष योग्यता से करने लगती है। इसी से जो मनुष्य चक्षु रिंद्रिय-हीन हो जाता है, उसकी स्पर्श-शक्ति प्रबल हो उठती है। स्पर्श-ज्ञान के प्राबल्य की सहायता से अंधा आदमी स्पर्श से ही दृष्टि का भी कुछ-कुछ काम कर लेता है। तथापि अंधता के कारण उसका जीवन फिर मी कंटकमय ही रहता है। अतएव निराश, दीन और दुखी अंधों को पढ़ाने-लिखाने की जिसने युक्ति निकाली, वह धन्य है।

योरप और अमेरिका में अंधों के अनेक स्कूल हैं, और हज़ारों अंधे पढ़-लिखकर कितने ही उपयोगी काम-धंधे करने लगे हैं। कोई