पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६
अद्भुत आलाप


पर फल क्या हुआ? जिस मैदान में बिजली से मेरी भेंट हुई; उसी में वह आदमी मरा हुआ पाया गया। उसके सिर पर जल जाने का एक बड़ा घाव था। मैं उन लोगों के इस अंध- विश्वास पर बहुत हसा और शिकार के लिये चल दिया।

एक पखवारा हो गया। मैं एक पहाड़ी गुफा के पास आया। मैंने सुना कि गत रात को दो रीछ वहाँ देख पड़े थे। मैंने कुछ आदमियों को भेजा कि वे हल्ला करके रीछों को अपनी माँद से निकालें। वे उधर गए। इधर मैं इस गुफा के मुँह पर बैठकर रीछों को राह देखने लगा।

सहसा वे दोनो रीछ दौड़ते हुए बाहर निकले। मैंने उनमें से एक पर फ़ैर की। गोली उसे भरपूर लगी। परंतु ज्यों ही मैंने दूसरी तरफ़ गर्दन फेरी, मैंने आश्चर्य से देखा कि अकस्मात् एक तीसरा रीछ मेरी तरफ़ आ रहा है। उसे देखकर मैं इसलिये ज़रा पीछे हटा कि उसके आघात से बचूँ, और सँभलकर उस पर गोली छोढ़ूँ। परंतु ऐसा करने में मेरा पैर फिसल गया, और मैं एक बहुत गहरे गढ़े में जा गिरा। गिरने से मेरा हाथ टूट गया। मेरी कुहनी भी उतर गई, और एक लकड़ी मेरे गाल में घुस गई, जिससे बड़ा भारी घाव हो गया। किसी तरह अपने घाव पर पट्टी बाँधकर हिंदोस्तानियों की मदद से मैं घोड़े पर सवार हुआ, और बड़ी मुश्किलों से अपने ठहरने की जगह पर पहुँचा। वहाँ मैं कई रोज़ तक विषमज्वर और दर्द की यातनाएँ भोगता हुआ पड़ा रहा। जब ज़रा तबियत ठीक हुई,