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भयंकर भूत-लीला


से उठा लिया। पर वह इतना गर्म था कि फ़ौरन ही मुझे फेक देना पड़ा। यह मैंने इसलिये किया, जिसमें मेरा संशय दूर हो जाय, और इस बात का मुझे विश्वास हो जाय कि सचमुच ही वह मशाल थी या नहीं। खैर, मेरा संशय दूर हो गया, और मेरा हाथ जलने से बचा। इस पर मुझे बड़ा अचंभा हुआ, और मैं पीछे लौटा। मैं कुछ ही दूर लौटा हूँगा कि सौभाग्य से मुझे अपना घोड़ा चरता हुआ मिल गया। मैं प्रसन्न होकर उस पर सवार हुआ, और बहुत पुकारने पर मुझे अपने उन दोनो भगोढो का पता लगा। खैर किसी तरह मैं सूर्य निकलते-निकलते, राम-राम करके, अपने पड़ाव पर पहुँचा।

इस घटना की खबर मेरे पथ-दर्शक ने चारो तरफ़ फैला दी। उसे सुनकर गाँव का नंबरदार मेरे पास आया। उसन कहा---"साहब, आपको बिजली ने दर्शन दे दिए। अब आप पर कोई-न-कोई आफ़त आने का डर है।" उसने और मेरे नौकरों ने मुझसे बहुत कुछ कहा-सुना, मेरे बहुत कुछ हाथ-पैर जोड़े कि मैं वहाँ आस-पास के जंगल में शिकार न खेलूँ। उन्होंने कहा---"साहब, क्या आपको इंजीनियर साहब की बात भल गई? उन्होंने जिस रात बिजली को देखा था, उसके दूसरे ही दिन उनके तंबू के भीतर घुसकर तेंदुए ने उनको मार डाला। साहब, आप शिकार को न जाइए। शिकार को जाने से कोई-न-कोई संकट आप पर जरूर आवेगा।" उन्होंने यह भी कहा कि एक हिंदोस्तानी ने एक वर्ष पहले इसी तालाब का पानी पिया था।