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पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१६१

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अद्भुत इंद्रजाल


मदारी अपनी मौहर को बजा रहा था। पर जान पड़ता था कि वह हम लोगों से कुछ दूर पर बजा रहा है। था वह पास ही; पर सुर में अंतर हो गया था।

"कुछ देर में वाद्य बंद हुआ। परंतु वह सर्पिणी नारी अपने कृष्ण-मणिमय रत्नों के प्रकाश में नाचती ही रही। इतने में उसने अपना रूप बदल डाला। वह दिव्य-रूप हो गई। उसके मुख- मंडल पर अप्रतिम प्रभा छा गई। उसने अपने विशाल नेत्रों से हम लोगों की तरफ निनिमेष-भाव से देखना शुरू किया। हम लोग उसके अद्भुत रूप को देखकर दंग हो गए। वैसा रूप हमने कभी पहले नहीं देखा था। और न अब आगे कभी देखने की संभावना ही है। उसके निरुपम रूप, उसके त्रिभुवन-जयी नेत्र और उसके मोहक लावण्य ने हम लोगों को बेहोश-सा कर दिया। हमारी चित्तवृत्ति उसी के मुख-मंडल में जाकर प्रविष्ट हो गई; शरीर-मात्र से हम लोग अपनी-अपनी जगह पर बैठे रह गए। गोरिंग की दशा भयंकर हो गई; क्योंकि उस दिव्य नारी की नज़र सबसे अधिक उसी की तरफ़ थी।

"हम सब बँगले के बरामदे में थे। खेल कुछ दूर नोचे हो रहा था। वह स्त्री नाचते-नाचते क्रमशः आगे बढ़ी, और थोड़ी देर में बरामदे की सीढ़ियों के पास आ गई। जब वह इतना पास आ गई, तब गोरिंग की अजीब हालत हो गई। वह बेतरह भयभीत हुआ-सा जान पड़ने लगा। मालूम होता था कि उसे आनंद भी हो रहा है और भय भी हो रहा है। कुछ मिनट बाद