लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। यदि वह सारा तमाशा भ्रम था, तो उसके चित्र कसे?
"रात होते ही और लोग तो अपने-अपने घर गए; मैं और मेजर साहब बंगले में गोरिंग की देख-भाल के लिये जागते रहे। मैंने कहा, मैं कुछ देर सो लूँ। तब तक मेजर साहब गोरिंग के पास बैठे। फिर मैं पहरे पर रहूँगा, और मेजर साहब को सोने के लिये छुट्टी दूँगा। मैं बाहर आकर सो गया। कोई १ बजने का वक्त था कि मेजर साहब घबराए हुए मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि मैं ज़रा सो गया और उतने में गोरिंग कहीं चला गया!
"हम लोग गोरिंग को हूँढ़ने निकले। मेजर साहब एक तरफ़ गए और मैं दूसरी तरफ़। बँगले के पास ही एक बाग़ था। थोड़ी देर में उसी तरफ़ से बंदूक़ की आवाज आई। मैं वहाँ दोड़ा गया। मैंने देखा कि मेजर साहब की गाद में गतप्राण गोरिंग पड़ा हुआ है। उसकी गर्दन में सर्प-दंश के कई घाव हैं। पास ही मेजर की गोली से मरा हुआ एक भयंकर साँप भी पड़ा है। यह हृदय-द्रावक दृश्य देखकर मैं काँप उठा। अपने मित्र गोरिंग की ऐसी शोचनीय मृत्यु पर मुके बेहद रंज हुआ। पर लाचारी थी । भवितव्यता बड़ी प्रबल होती है!"
जनवरी, १९०६