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प्राचीन मेक्सिको में नरमेघ-यज्ञ


में से यदि कोई सेनापति या प्रसिद्ध वीर पुरुष होता, तो उस व्यक्ति के साथ थोड़ी सी रियायत भी की जाती थी। उसके हाथ में एक ढाल और तलवार दे दी जाती थी। वह उपस्थित लोगों में से एक-एक से लड़ता। यदि वह जीत जाता, तो उसे अपने घर जीवित चले जाने की आज्ञा मिल जाती। हार जाने पर---चाहे वह एक दर्जन आदमियों को हराकर ही हारता--- उसकी वही गति होती, जो और लोगों को होती थी। जब इस प्रकार का युद्ध होता, तब बलिदान के स्थान में एक गोल पत्थर रख दिया जाता। उसी के चारो ओर घूम-घूमकर बलिदान किया जानेवाला पुरूष लड़ता और दर्शक नीचे खड़े होकर युद्ध देखते।

मेक्सिकोवाले इन नरमेघ-यज्ञों को अपने मनोरंजनार्थ न करते थे। उनकी धार्मिक पुस्तकों में इस प्रकार के यज्ञों का बड़ा माहात्म्य गाया गया है। समय आने पर बलिदानों का न होना अशुभ समझा जाता था। कभी-कभी स्त्रियाँ भी बलिदान होती थीं। जब पानी न बरसता, तब छोटे-छोटे बच्चे देवतों की भेंट चढ़ाए जाते। पहले इन बच्चों को अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए जाते। फिर उन्हें एक बहुमूल्य चादर पर लिटाया जाता। इस चादर को पुजारी लोग तानकर उठाए हुए मंदिर में ले जाते। आगे बाजे बजते जाते, पीछे दर्शकों की भीड़ चलती। मंदिर में पहुँचकर बच्चों के गले में मालाएँ पहनाई जातीं, और उनसे कहा जाता कि लो, अब तुम मारे जाते हो। वे बेचारे रोने