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पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१६८

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अद्भुत आलाप


अच्छी तरह देख सकते। वहाँ पर उसे एक शिला पर लिटा देते। पुजारियों में से पाँच तो उसके हाथ-पैर जोर से पकड़ लेते और एक उसके पेट में छुरा भोंक देता और तुरंत ही उसका हृदय बाहर निकाल लेता, जिसे पहले तो वह सूर्य को दिखाता और फिर टैज़-कैटली-कोपा की मूर्ति के चरणों पर डाल देता। देवता के चरणों पर हृदय-खंड के गिरते हो नीचे खड़े हुए सारे दर्शक झुक-झुककर देवता की वंदना करने लगते। तत्पश्चात् एक पुजारी उठता और लोगों को संसार की निस्सारता पर उपदेश देने लगता। अंत में वह कहता-"भाइयो, देखो, दुनिया कैसी बुरी जगह है। पहले तो सांसारिक बातों से बड़ा सुख मिलता है, जैसे कि इस मनुष्य को मिला था, जो अभी मारा गया है, परंतु अंत में उनसे बड़ा दुःख होता है, जैसा कि इस आदमी को हुआ। सांसारिक सुखों पर कभी भरोसा मत करो, और न उन पर गर्व ही करो।"

यह तो इस बलिदान की साधारण रीति थी। बलिदान किए जानेवाले व्यक्ति को बलिदान के समय प्रायः बहुत शारीरिक कष्ट भी पहुँचाया जाता था। उसे लोग शिला पर विठा देते थे, और खूब पीटते थे। लातों और घूसों तक ही बात न रहती; लोग तीर और छुरे तक उसके शरीर में चुभोते थे। उसका शरीर लोहू से लदफद हो जाता, और अंत में वह इस यंत्रणा से विह्वल होकर पुजारियों से प्रार्थना करने लगता कि शीघ्र ही मेरे प्राण ले लो। बलिदान के लिये चुने गए व्यक्ति के साथियों