पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७१
प्राचीन मेक्सिको में नरमेघ-यज्ञ


उन्हीं पाश्चात्य विद्वानों के लेखों से नहीं मिलते, जिन्होंने मेक्सिको की बातों की खोज करके ऐतिहासिक पुस्तकें लिखी हैं, किंतु मेक्सिको के आदिम निवासी तक इस बात की गवाही देते हैं। इसके अतिरिक्त वह मंदिर, जिसमें यह महानरमेघ-यज्ञ हुआ था, उस समय भी विद्यमान था, जब स्पेनवालों ने मेक्सिको को अपने हस्तगत किया था। जिन लोगों का बलिदान होता था, उनकी खोपड़ियाँ मंदिर की दीवारों पर खूँटियों से लटका दी जाती थीं। उस मंदिर में स्पेनवालों की बहुत-सी खोपड़ियाँ लटकी मिली थीं। स्पेन के दो सैनिकों ने उन्हें गिना भी था। कहते है कि उनकी संख्या एक लाख छत्तीस हज़ार से अधिक थी। इन आदमियों के इस प्रकार, हाथ-पैर हिलाए बिना मर जाने का एक बड़ा भारी कारण भी था । वह यह कि उन लोगों को दृढ़ विश्वास था कि इस प्रकार की मृत्यु बहुत अच्छी होती है, और मरने के बाद हमें स्वर्ग और उसके सुख प्राप्त होंगे। इसी से वे अपना बलिदान कराकर बड़ी खुशी से मरते थे।

मेक्सिकोवाले हर साल अपने आस-पास के देशों पर चढ़ाई करते थे। दिग्विजय के लिये नहीं, केवल बलिदान के लिये दूसरे देशों के आदमियों को पकड़ लाने के लिये। मेक्सिको के पास टैंज़कीला नाम का एक राज्य था। मेक्सिको के राजा और वहाँ के राजा में यह अहदनामा हो गया था कि साल में एक खास दिन, एक नियत स्थान पर, दोनो राज्यों की सेनाएँ एक दूसरी से लड़ें। हार-जीत की कोई शर्त न थी। बात थी केवल इतनी