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परिचित्त विज्ञान-विद्या


उसके हाथ पर होने लगा। जहाँ उसके हाथ पर कोई चीज़ रक्खो गई, या जहाँ कोई चीज़ उसे दिखाई गई, तहाँ उसकी स्त्री ने उसका नाम स्लेट पर लिखा। इसके बाद काग़ज़ के टुकड़ों पर या कार्डों पर पेसिल से संख्याएँ लिखकर दर्शकों ने ज़ानसिग को दिखाना शुरू किया। उधर उसकी स्त्री ने तत्काल ही उन संख्याओं को यथाक्रम स्लेट पर लिखना आरंभ किया। एकआध दफ़े उसने ग़लती की। अँगरेज़ी ३ को उसने ८ लिखा, ओर ६ को ९। इसका कारण इन अंकों के प्रकार की समानता थी। पर प्रायः उसने और सब संख्याएंँ सही लिखीं। लंबी-लंबी संख्याएँ लोगों ने काग़ज़ पर लिखीं। उन्हें मन-ही-मन पढ़ने में ज़ानसिग को थोड़ी-बहुत कठिनता भी हुई; पर उसकी स्त्री को, उन्हें स्लेट पर लिखने में, ज़रा भी कठिनता न हुई। ज़ानसिग इधर-उधर दर्शकों के चीज़ दोड़ता रहा। कभी इस चीज़ को देखा, कभी उस चीज़ को। उधर उसकी स्त्री सबके नाम साफ़-साफ स्लेट पर लिखकर दर्शकों को आश्चर्य के महासमुद्र में डुबोती रही। कुछ देर में ज़ानसिग मेरे पास बैठे हुए मेरे एक मित्र के पास आया। बोला---"कुछ दीजिए। बैंक का नोट, या जो आपके मन में आवे।" मेरे मित्र ने एक कोरी चेक निकाली।

ज़ानसिग ने पूछा---"यह क्या है?"

"यह एक चेक है।"

"कितने की है ?"