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अद्भुत आलाप

"कितने की भी नहीं; कोरी है।"

"इसका नंबर क्या है?"

नंबर बतलाने पर उसकी स्त्री ने स्लेट पर एक के बाद एक अंक सही-सही लिख दिए। इसे हाथ की चालाकी या और कोई बात न समझिए। पर यह चित्त-विज्ञान का फल था। ज़ानसिग और उसकी स्त्री का चित्त दूध-बूरे की तरह एक हो रहा था। इसी से ज़ान-सिग के मन की बात उसकी स्त्री को तत्काल मालूम हो जाती थी। पर विशेषता यह थी कि स्त्री के मन की बात ज़ानसिग नहीं जान सकता था।

इन लोगों को अच्छी तरह परीक्षा करने के इरादे से मैं ज़ानसिग और उसकी स्त्री के साथ एक अलग कमरे में गया। वहाँ जाकर मैंने ज़ानसिग की स्त्री को पड़ोस के कमरे में अपने एक मित्र के साथ बिठलाया। उसे स्लेट-पेंसिल दी। दूसरे कमरे में मैं ज़ानसिग के पास बैठा। इस कमरे में एक और शख्स भी थे। उन्होंने स्लेट पर एक ही लाइन में ८ अंक लिखे। स्लेट मैने ज़ानसिग के हाथ में दी। उसने एक-एक अंक को क्रम-क्रम से ध्यानपूर्वक देखना शुरू किया। जैसे-जैसे वह देखता गया, वैसे-ही-वैसे दूसरे कमरे से उसकी स्त्री एक-एक अंक उच्चारण करती गई। याद रखिए, दोनो कमरों के बीच दो दरवाजे थे। और भी कितनी ही परीक्षाएँ हम लोगों ने कीं। सबमें ज़ानसिग की स्त्री पास हो गई। ज़ानसिग ने एक बार अपनी स्लेट पर एक वृत्त बनाया। उसके ऊपर उसने