सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
अद्भुत आलाप


विश्वास है कि लेखक का कहना ठीक है। वह समय नजदीक जान पड़ता है, जब इस विद्या के तत्त्व अच्छी तरह लोगों के ध्यान में आ जायँगे, और अभ्यास करते-करते लोग सैकड़ों कोस दूर रहनेवाले अपने इष्ट-मित्रों से, बिना किसी कठिनाई के, बातचीत कर सकेंगे।

मनुष्य के मस्तिष्क में जो ज्ञानागार है, वह आर कुछ नहीं, सिर्फ़ एक प्रकार की बिजली की शक्ति का खजाना है। उसी शक्ति की प्रेरणा से, इच्छा करते ही, आदमी हाथ-पैर हिला सकता है, और अपने अंगों का आकुंचन और प्रसारण कर सकता है। किसी बात की चिंतना करने या किसी बात को सोचने से भी बिजली का प्रवाह ज्ञानागार से बह निकलता है। विश्वव्यापी ईथर-नामक पदार्थ में भी बिजली की शक्ति है। उस शक्ति से मस्तिष्क की वैद्युतिक शक्ति का सम्मेलन होने पर उस प्रवाह का लगाव हजारों क्या, लाखों कोस दूर तक हो सकता है। इस दशा में, किसी और जगह पर दूर रहनेवाले आदमी के मस्तिष्क से प्रवाहित होनेवाली वैद्युतिक शक्ति का प्रवाह भी यदि उसी परिमाण में प्रवाहित हो, तो दोनो एक होकर एक दूसरे के मन की बात तत्काल जान सकते हैं। मारकोनी की बेतार की तारबर्क़ी भी इसी सिद्धांत का अनुसरण करती है। मनुष्य के मस्तिष्क में जो छोटे-छोटे दाने हैं, उनमें बिजली की शक्ति है। उनमें वे ही गुण हैं, जो मारकोनी की बेतार की तारबर्क़ी के यंत्रों में हैं। ये यंत्र दो होते हैं---