लोक के बीच में कहना चाहिए। मर्त्य और अमर्त्य एक दूसरे
को रगड़ते हुए जाते हैं, यह सुनकर जरूर आश्चर्य होगा। पर
बात ऐसी ही है।
पूर्वोक्त लाट साहब ने जो चिट्ठियाँ परलोक से भेजी हैं, उनकी कुछ बातों का यह सिर्फ़ संक्षेप है। मूल लेख में न जाने क्या- क्या लिखा है। इंजीनियर, कारीगर, नए-नए आविष्कार करनेवाले, जनरल, कर्नल, सिपाही इत्यादि सबकी बातें हैं। पार्लियामेंट, पार्लियामेंट के मेंबर, आयलैंड की प्रजा-पालन-नीति आदि का भी ज़िक्र है। इन पत्रों को पढ़ने से यह मालूम होता है कि मृत लाट साहब शायद 'थियॉसफ्रिस्ट' थे, क्योंकि जन्म-मरण, लोक-परलोक, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक आदि का वर्णन जो इन चिट्टियों में है, वह बहुत अंश में 'थियॉसफ़ी' के सिद्धांतों से मिलता है। शायद अब तक इन बातों का यथार्थ ज्ञान औरों को नहीं था। इन पेचीदा प्रश्नों को हल करने का पुण्य इसी समाज के महात्माओं के भाग्य में था।
एक और मासिक पुस्तक में एक आत्मा के कुछ प्रश्नोत्तर जपे हैं। उनको भी हम यहाँ पर देते हैं---
प्रश्न---तुम कौन हो?
उत्तर---मैं एक अज्ञात आत्मा हूँ। मेरी उम्र ३३ वर्ष की है। दक्षिणी आफ्रिका के कोलेजों-नगर में मेरा शरीर छूटा था। मैं दफ़न नहीं किया गया। लड़ाई के बाद मेरा शरीर एक गढ़े में पड़ा रह गया। मैं आकाश में घूम रहा हूँ। मुझे कष्ट है, क्योंकि