तीन साल बाद उस पर हिपनाटिज्म अर्थात् प्राण-परिवर्तन की प्रक्रिया की गई। तब ए० जे० ब्राउन लौट आया। उसने कहा कि मेरा गोदाम क्या हुआ? मैं एंसेलबूर्न और उनकी बीवी को नहीं जानता। यह क्या बात है, किसी की समझ में न आई! अंत तक एंसेलबूर्न और ए० जे० ब्राउन ने परस्पर एक दूसरे को नहीं पहचाना। हिपनाटिजम की सहायता से ही ए० जे० ब्राउन प्रकट और लुप्त होते रहे।
एक कसेरे का उदाहरण
सन् १९०४ में डॉक्टर पासवन ने एक अख़बार में लिखा कि कुछ दिन हुए, एक धनवान् कसेरा एक दिन शाम को हवा खाने के लिये निकला, और एकाएक ग़ायब हो गया। दो वर्ष बाद एक और देश में एक कसेरा अपने औज़ार फेककर चौंक पड़ा। उसने कहा, मैं यहाँ कैसे आया? मेरा यह नाम कैसे पड़ा? मैं तो अमुक आदमी हूँ, जो दो वर्ष पहले खो गया था। दो वर्ष तक कौन प्रेत उस पर सवार था, कुछ नहीं मालूम हुआ। इन दो वर्षों की बातें उसे बिलकुल याद नहीं।
डॉक्टर डाना के घादमी का उदाहरण
सन् १८६४ की 'साइकालॉजिकल रिव्यू' नामक पुस्तक में डॉक्टर डाना ने एक रोगी का हाल लिखा है कि वह एक बार धुएँ के कारण बेहोश हो गया। जब होश में आया, तब हाना के समान वह एक बालक की-सी बुद्धि का आदमी हो गया। उसे तीन महीने तक लिखना-पढ़ना सीखना पड़ा। तीन महीने