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अद्भुत आलाप


खंडन लोगों ने किया भी है। विचार क्या चीज़ है? सोचना किसे कहते हैं? सिर में एक प्रकार के ज्ञान-तंतु हैं। बाहरी जगत् की किसी चीज़ या शक्ति का प्रतिबिब-रूपी ठप्पा जो उन तंतुओं पर उठ आता है, उसी का नाम विचार है। जितने प्रकार के शब्द सुन पड़ते हैं, उनकी तसवीर सिर के भीतर तंतुओं पर खिंच-सी जाती है। यह तसवीर मिटाए नहीं मिटती। कारण उपस्थित होते ही वह नई होकर ज्ञान-ग्राहिका शक्ति के सामने आ जाती है। यह कहना ग़लत है कि बिना भाषा के विचार नहीं हो सकता। जो लोग ऐसा कहते हैं, वे शायद उन शब्द-समूहों को भाषा कहते हैं, जो वर्ण रूपी चिह्नों से बने हैं। पर क्या कोई इंजीनियर या मिस्त्री एक बड़े-से-बड़े मकान या मीनार की कल्पना, बिना ईंट, पत्थर और चूने इत्यादि का नाम लिए भी, नहीं कर सकता? क्या ज्यामिति-शास्त्र के पंडित को अपना मतलब सिद्ध करने के लिये वर्ण-रूपिणी भाषा की कुछ भी ज़रूरत पड़ती है? अथवा क्या बहरे और गूँगे आदमी ज्ञान-तंतुओं पर चित्रित चित्रों की सहायता से भावना, कल्पना, विचार या स्मरण नहीं करते?

फिर विचार की बड़ी ज़रूरत भी नहीं देख पड़ती। क्या बिना विचारणा के काम नहीं चल सकता? सच पूछिए, तो जगत में बहुत कम विचारणा होती है। हरबर्ट स्पेंसर तक के बड़े-बड़े ग्रंथ विचारणा के बल पर नहीं लिखे गए। स्पेंसर ने अपने आत्मचरित में ऐसा ही लिखा है। उसका कथन है कि मैंने उन्हें अपनी