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पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/९९

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क्या चिड़ियाँ भी सूँघती हैं?


चीज़ों से खूब लपेट दिया। तब अनाज चुनने के लिये उन्होंने एक भूखे मुर्गे को छोड़ा। उसने चुनते-चुनते रोटी पर चोंच मारी, और उसके भीतर उसने चोंच प्रवेश कर दी। एक सेकंड में उसने चोंच खींच ली, और गरदन ऊपर उठाकर उसे ज़रा हिलाया। बस, फिर वह खाने लगा, और रोटी के टुकड़ों को एक-एक करके खा गया। इस जाँच से अच्छी तरह यह न मालूम हुआ कि मुर्ग को गंध से घृणा है या प्रीति। इस कारण हिल साहब ने एक और जाँच की। इस बार की जाँच पहले से अधिक कड़ी थी।

उन्होंने छलनी की तरह के एक बर्तन को उल्टा करके उसके ऊपर दाना रख दिया। बर्तन के नीचे क्लोरोफार्म (ज्ञान-नाशक दवा, जिसे सुँघाकर डॉक्टर लोग चीड़-फाड़ का काम करते हैं ) में डुबोकर स्पंज का एक टुकड़ा उन्होंने रक्खा। तब दाना चुगने के लिये एक मुर्गी को छोड़ा। जब थोड़ा दाना चुगने से रह गया, तब उस चिड़िया ने बर्तन के ऊपर धीरे-धीरे चोंच मारना शुरू किया। उसने बार-बार अपना सिर ऊपर उठाया, और बाजू फैलाए। इससे यह जाहिर हुआ कि क्लोरोफार्म का कुछ असर उस पर जरूर हुआ। परंतु जब उन्होंने मुर्ग को उसी तरह चुगने के लिये छोड़ा, तब उस हज़रत ने ज़रा भी इस बात का चिह्न नहीं ज़ाहिर किया कि उस पर क्लोरोफार्म का कुछ भी असर हुआ हो। इसके बाद परीक्षक ने 'प्रूज़िक एसिड' को छलनी के नीचे रक्खा। यह बहुत ही तीव्र