पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

27 अनासक्तियोग श्रीभगवानुवाच असंशयं महाबाहो मनो दुनिग्रह चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।३५।। श्रीभगवान बोले- हे महाबाहो ! सच है कि मन चंचल होनेके कारण वश करना कठिन है । पर हे कौंतेय ! अभ्यास और वैराग्यसे वह वश किया जा सकता ३५ असयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः । वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ।।३६।। मेरा मत है कि जिसका मन अपने वशमें नही है, उसके लिए योग साधना बड़ा कठिन है; पर जिसका मन अपने वश में है और जो यत्नवान है वह उपाय- द्वारा साध सकता है। अर्जुन उवाच अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः । अप्राप्य योगसंसिद्धि का गति कृष्ण गच्छति ॥३७।। अर्जुन बोले- हे कृष्ण ! जो श्रद्धावान तो है पर यत्नमें मंद होनेके कारण योगभ्रष्ट हो जाता है, वह सफलता न