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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/११८

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for समस्त कर्मोंका कर्ता-भोक्ता वह है, ऐसा समझकर जो मृत्युके समय शांत रहकर ईश्वरमें ही तन्मय रहता है तथा कोई वासना उस समय जिसे नहीं होती, उसने ईश्वरको पहचाना है और उसने मोक्ष पाई है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'ज्ञान- विज्ञानयोग' नामक सातवां अध्याय । अक्षरब्रह्मयोग इस अध्यायमें ईश्वरतत्त्वको विशेषरूपसे समझाया गया है। अर्जुन उवाच किं तद्ब्रह्म किमध्यात्म कि कर्म पुरुषोत्तम । अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ।।१।। अर्जुन बोले- हे पुरुषोत्तम ! इस ब्रह्मका क्या स्वरूप है?