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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१३०

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मनासक्तियोग पालन करनेवाला हूं, फिर भी मैं उनमें नहीं हूं। परंतु मैं उनका उत्पत्तिकारण हूं। ५ टिप्पणी-मुझमें सब जीव हैं और नहीं हैं। उनमें मैं हूं और नहीं हूं। यह ईश्वरका योगबल, उसकी माया, उसका चमत्कार है। ईश्वरका वर्णन भगवानको भी मनुष्यकी भाषामें ही करना ठहरा, इसलिए अनेक प्रकारके भाषा-प्रयोग करके उसे संतोष देते हैं। ईश्वरमय सब है, इसलिए सब उसमें है। वह अलिप्त है, प्राकृत कर्ता नहीं है, इसलिए उसमें जीव नहीं हैं, यह कहा जा सकता है। परंतु जो उसके भक्त हैं उनमें वह अवश्य है। जो नास्तिक हैं उनमें उसकी दृष्टिसे तो वह नहीं है। और इसे उसके चमत्कारके सिवा और क्या कहा जाय? यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् । तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥ ६ ॥ जैसे सर्वत्र विचरती हुई महान् वायु नित्य आकाश- में विद्यमान है ही,वैसे सब प्राणी मुझमें हैं ऐसा जान। ६ सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृति यान्ति मामिकाम् । कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ ' बिसृजाम्यहम् ।। ७॥ हे कौंतेय ! सारे प्राणी कल्पके अंतमें मेरी प्रकृतिमें