पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१३२

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मनासक्तियोग टिप्पणी- क्योंकि जो लोग ईश्वरकी सत्ता नहीं मानते, वे शरीरस्थित अंतर्यामीको नहीं पहचानते और उसके अस्तित्वको न मानते हुए जड़वादी बने रहते हैं। मोघाशा मोधकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः । राक्षसीमासुरी चैव प्रकृति मोहिनी श्रिताः ।।१२।। व्यर्थ आशावाले, व्यर्थ काम करनेवाले और व्यर्थ ज्ञानवाले मूढ़ लोग मोहमें डाल रखनेवाली राक्षसी या आसुरी प्रकृतिका आश्रय लेते हैं । १२ महात्मानस्तु मां पार्थ दैवी प्रकृतिमाश्रिताः । भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ।।१३॥ इससे विपरीत, हे पार्थ ! महात्मालोग देवी प्रकृतिका आश्रय लेकर प्राणीमात्रके आदिकारण ऐसे अविनाशी मुझको जानकर एकनिष्ठासे भजते हैं । १३ सततं कीर्तयन्तो मा यतन्तश्च दृढव्रताः। नमस्यन्तश्च मा भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥१४॥ दृढ़ निश्चयवाले, प्रयत्न करनेवाले वे निरंतर मेरा कीर्तन करते हैं, मुझे भक्तिसे नमस्कार करते हैं और नित्य ध्यान धरते हुए मेरी उपासना करते हैं । १४ ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते। कत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥१५॥ .