पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१४७

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बसवां मनाय : विभूतियोग पावन करनेवालोंमें पवन मैं हूं, शस्त्रधारियोंमें परशुराम मैं हूं, मछलियोंमें मगरमच्छ मैं हूं, नदियोंमें गंगा मैं हूं। सगणिामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥३२॥ हे अर्जुन ! सृष्टियोंका आदि, अंत और मध्य में हूं, विद्याओंमें अध्यात्मविद्या में हूं और विवाद करने- वालोंका वाद मैं हूं। ३२ अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च । अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥३३॥ अक्षरोंमें अकार मैं हूं, समासोंमें द्वंद्व में हूं, अवि- नाशी काल मैं हूं और सर्वव्यापी धारण करनेवाला भी ३३ मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । कीर्तिः श्रीक्चि नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥३४॥ सबको हरनेवाली मृत्यु में हूं, भविष्यमें उत्पन्न होनेवालेका उत्पत्तिकारण मैं हूं और नारी जातिके नामोंमें कीर्ति, लक्ष्मी, वाणी, स्मृति, मेधा (बुद्धि), धृति (धैर्य) और क्षमा मैं हूं। ३४ बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमतूनां कुसुमाकरः ॥३५॥ मैं हूं।