पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१४८

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अनासक्तिमोम 1 सामोंमें बृहत् (बड़ा) साम मैं हूं, छंदोंमें गायत्री छंद मैं हूं। महीनोंमें मार्गशीर्ष में हूं, ऋतुओंमें बसंत मैं हूं। . द्यूत छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् । जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वस त्त्ववतामहम् ॥३६॥ छल करनेवालेका द्यूत में हूं, प्रतापीका प्रभाव में हूं, जय मैं हूं, निश्चय में हूं, सात्त्विक भाववालेका सत्त्व मै हूं। दिप्पलो--छल करनेवालोंका द्यूत में हूं,इस वचन- से भड़कनेकी आवश्यकता नहीं है । यहां सारासारका निर्णय नहीं है, कितु जो कुछ होता है वह बिना ईश्वर- की मर्जीके नहीं होता, यह बतलाना है और सब उसके अधीन हैं, यह जाननेवाला छली भी अपना अभिमान छोड़कर छल त्यागे। वृष्णीना वासुदेवोऽस्मि पाण्डवाना धनंजयः । मुनीनामप्यह व्यास: कवीनामुशना कविः ।।३७।। वृष्णिकुलमें वासदेव मैं हूं, पांडवोंमें धनंजय (अर्जुन) मैं हूं, मुनियोंमें व्यास मैं हूं और कवियोंमें उशना में हूं। ३७