पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१६४

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3 ihat फिर-फिर आपको नमस्कार पहुंचे । पुरस्तादष पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व । अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्व समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥४०॥ हे सर्व ! आपको आगे, पीछे, सब ओरसे नमस्कार है। आपका वीर्य अनंत है, आपकी. शक्ति अपार है, सब आप ही धारण करते हैं, इसलिए आप सर्व ४० सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति । अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥४१॥ यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु। एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥४२॥ मित्र जानकर और आपकी यह महिमा न जानकर हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखा ! इस प्रकार संबोधन कर मुझसे भूलमें या प्रेममें भी जो अविवेक हुआ हो और विनोदार्थ खेलते, सोते, बैठते या खाते अर्थात् सोह- बतमें आपका जो कुछ अपमान हुआ हो उसे क्षमा