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संजयने कहा- ! यों वासुदेवने अर्जुनसे कहकर अपना रूप फिर दिखाया और फिर शांत मूर्ति धारण करके भयभीत अर्जुनको उस महात्माने आश्वासन दिया । ५० अर्जुन उवाच दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन । इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः ॥५१॥ अर्जुन बोले- हे जनार्दन ! यह आपका सौम्य मानवस्वरूप देख- कर अब मैं शांत हुआ हूं और ठिकाने आ गया हूं। ५१ श्रीमगवानुवाच सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम। देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाक्षिणः ॥५२॥ श्रीभगवान बोले- जो मेरा रूप तूने देखा उसके दर्शन बहुत दुर्लभ हैं। देवता भी वह रूप देखनेको तरसते रहते हैं। ५२ नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया । शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥५३॥ -