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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१७३

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मोव मन बाधत्स्व मयि बुद्धि निवेशय । निवसिष्यसि मय्येव अत अध्वं न संशयः ॥८॥ अपना मन मुझमें लगा, अपनी बुद्धि मुझमें रख, इससे इस (जन्म)के बाद निःसंशय मुझे ही पावेगा। ८ अब चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् । अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनंजय ॥९॥ जो तू मुझमें अपना मन स्थिर करने में असमर्थ हो तो हे धनंजय ! अभ्यासयोगद्वारा मुझे पानेकी इच्छा रखना। अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव । मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥१०॥ ऐसा अभ्यास रखनेमें भी तू असमर्थ हो तो कर्म- मात्र मुझे अर्पण कर और इस प्रकार मेरे निमित्त कर्म करते-करते भी तु मोक्ष पावेगा अर्थतदप्यशक्तोऽसि कतुं मद्योगमाश्रितः । सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ॥११॥ और जो मेरे निमित्त कर्म करनेभरकी भी तेरी शक्ति न हो तो यत्नपूर्वक सब कर्मोंके फलका त्याग श्रेयो हि ज्ज्ञानादयानं ज्ञानमभ्यासा- विशिष्यते।