पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१७७

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तेशवा मायनाविनापयोग भीमनवानुवाच इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते । एतबो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥१॥ भीमगवान बोले- हे कौंतेय ! यह शरीर क्षेत्र कहलाता है और इसे जो जानता है उसे तत्त्वज्ञानी लोग क्षेत्रज्ञ कहते हैं। १ क्षेत्रशं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत । क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोनिं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ।।२।। और हे भारत ! समस्त क्षेत्रों-शरीरों में स्थित मुझको क्षेत्रज्ञ जान । मेरा मत है कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके भेदका ज्ञान ही ज्ञान है । २ तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् । स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥ ३ ॥ यह क्षेत्र क्या है, कैसा है, कैसे विकारवाला है, कहांसे है और क्षेत्रज्ञ कौन है, उसकी शक्ति क्या है, यह मुझसे संक्षेपमें सुन । ऋषिभिर्बहुधा मीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् । ब्रह्मसूत्रपदेश्चैव हेतुमद्भिविनिश्चितैः ॥४॥ विविध छंदोंमें, भिन्न-भिन्न प्रकारसे और उदा- हरण युक्तियोंद्वारा, निश्चययुक्त ब्रह्मसूचक वाक्योंमें