पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१७८

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४ - ऋषियोंने इस विषयको बहुत गाया है । महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च । इन्द्रियाणि दर्शकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥५॥ इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं संघातश्चेतना धृतिः । एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥ ६॥ महाभूत, अहंता, बुद्धि, प्रकृति, दस इंद्रियां, एक मन, पांच विषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, संघात, चेतनशक्ति, धृति--यह अपने विकारोंसहित क्षेत्र संक्षेप- में कहा है। ५-६ टिप्पणी-महाभूत पांच हैं--पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश । अहंकार अर्थात् शरीरके प्रति विद्यमान अहंता, अहंपना। अव्यक्त अर्थात् अदृश्य रहनेवाली माया, प्रकृति । दस इंद्रियोंमें पांच ज्ञानें- द्रियां--नाक, कान, आंख, जीभ और चाम, तथा पांच कर्मेंद्रियां--हाथ, पैर, मुंह और दो गुह्येद्रियां । पांच गोचर अर्थात् पांच ज्ञानेंद्रियोंके पांच विषय-सूंघना, सुनना, देखना, चखना और छूना । संघात अर्थात् शरीरके तत्त्वोंकी परस्पर सहयोग करनेकी शक्ति । धृति अर्थात् धैर्यरूपी सूक्ष्म गुण नहीं, किंतु इस शरीरके परमाणुओंका एक दूसरेसे सटे रहनेका गुण । यह गुण अहंभावके कारण ही संभव है और यह अहंता