सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तेपणा मयाब मेमनेत्रविमापयोग समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् । विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति ॥२७॥ समस्त नाशवान प्राणियोंमें अविनाशी परमेश्वरको समभावसे मौजूद जो जानता है वही उसका जानने- वाला है। २७ समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् । न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥२८॥ जो मनुष्य ईश्वरको सर्वत्र समभावसे अवस्थित देखता है वह अपने-आपका घात नहीं करता और इससे परमगतिको पाता है। २८ टिप्पनी-समभावसे अवस्थित ईश्वरको देखने- वाला आप उसमें विलीन हो जाता है और अन्य कुछ नहीं देखता । इसलिए विकारवश न होकर मोक्ष पाता है, अपना शत्रु नहीं बनता। प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः । यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥२९॥ सर्वत्र प्रकृति ही कर्म करती है ऐसा जो समझता है और इसीलिए आत्माको अकर्तारूप जानता है वही जानता है। २९ टिप्पनी-कैसे, जैसे कि सोते हुए मनुष्यका बात्मा निद्राका कर्ता नहीं है, किंतु प्रकृति निद्राका कर्म कस्ती