पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१८८

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गुणत्रयविभागयोग गुणमयी प्रकृतिका थोड़ा परिचय करानेके बाद स्वभावतः तीनों मुणोंका वर्णन इस अध्यायमें आता है और यह करते हुए गुणातीतके लक्षण भगवान गिनाते है। दूसरे अध्यायमें जो लक्षण स्थितप्रनके दिखाई देते हैं, बारहवेंमें जो भक्तके दिखाई देते हैं, वैसे इसमें गुणातीतके हैं। श्रीभगवानुवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् । यज्जात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥१॥ श्रीभगवान बोले- ज्ञानोंमें जिस उत्तम ज्ञानका अनुभव करके सब मुनियोंने यह शरीर छोड़नेपर परम गति पाई है वह मैं तुझसे फिर कहूंगा। इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः । सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥२॥ इस ज्ञानका आश्रय लेकर जिन्होंने मेरे भावको प्राप्त किया है उन्हें उत्पत्तिकालमें जन्मना नहीं पड़ता और प्रलयकालमें व्यथा भोगनी नहीं पड़ती। २