पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२०६

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चनासक्तियोग दैवासुरसंपद्विभागयोग इम अध्यायमें देवी और आसुरी संपद्का वर्णन है। श्रीभगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः । दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥१॥ अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपशुनम् । दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥२॥ तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता। भवन्ति संपदं देवीमभिजातस्य भारत ।।३।। श्रीभगवान बोले- हे भारत ! अभय, अंतःकरणकी शुद्धि, ज्ञान और योग, निष्ठा, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, अपैशुन, भूतदया, अलोलुपता, मृदुता, मर्यादा, अचंचलता, तेज, क्षमा, धृति, शौच, अद्रोह, निरभिमान-इतने गुण उसमें होते हैं जो दैवी संपत्को लेकर जन्मा है। १-२-३ टिप्पनी-दम अर्थात् इंद्रियनिग्रह, अपैशुन अर्थात् किसीकी चुगली न खाना, अलोलुपता अर्थात् लालसा . 1 . "