पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२२४

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संशयरहित हुआ, शुद्धभावनावाला, त्यागी और बुद्धिमान असुविधाजनक कर्मका द्वेष नहीं करता, सुविषावालेमें लीन नहीं होता। न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः । यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ॥११॥ कर्मका सर्वथा त्याग देहधारीके लिए संभव नहीं है; परंतु जो कर्मफलका त्याग करता है वह त्यागी कहलाता है। अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम् । भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनांक्वचित् ॥१२॥ . त्याग न करनेवालेके कर्मका फल कालांतरमें तीन प्रकारका होता है, अशुभ, शुभ और शुभाशुभ । जो त्यागी (संन्यासी) है उसे कभी नहीं होता। १२ पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध में सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम् ॥१३॥ हे महाबाहो ! कर्ममात्रकी सिद्धिके विषयमें सांख्यशास्त्रमें पांच कारण कहे गये हैं। वे मुझसे जान। अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विषम् । विविधाश्च पृथक्वेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् ॥१४॥ वे पांच ये हैं-क्षेत्र, कर्ता, भिन्न-भिन्न साधन, भिन्न-भिन्न क्रियाएं और पांचवां देव । १४