.. . . रागी कर्मफलप्रेप्सुलुब्धो हिंसात्मकोशुचिः । हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥२७॥ जो रागी है, जो कर्मफलकी इच्छावाला है, लोभी है, हिंसावान है, मलिन है, हर्ष और शोकवाला है, वह राजस कर्ता कहलाता है। २७ अयुक्तःप्राकृतःस्तब्धः शठोनैष्कृतिकोऽलसः । विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥२८॥ जो अव्यवस्थित, असंस्कारी, झक्की, शठ, नीच, आलसी, अप्रसन्नचित्त और दीर्घसूत्री है, वह तामस कर्ता कहलाता है। २८ बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु । प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥२९॥ हे धनंजय ! बुद्धि और धृतिके गुणके अनुसार पूरे और पृथक्-पृथक् तीन प्रकार कहता हूं, उन्हें सुन । २९ . प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये । बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बतिःसापार्य सात्त्विकी ॥३०॥ प्रवृत्ति, निवृत्ति, कार्य, अकार्य, भय, अभय, बंध, मोक्षका भेद जो बुद्धि (उचित रीतिसे) जानती है बह सात्त्विक बुद्धि है। यया धर्ममधर्म च कार्य चाकार्यमेव च । अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥३१॥
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