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टिप्पणी—इसमें तात्पर्य यह है कि जिसने इस ज्ञान का अनुभव किया है वहीं इसे दुसरे को दे सकता है। शुद्ध उच्चारण करते अर्थ सहित सुना जानेवालों के विषय में ये दोनों श्लोक नहीं है।
कच्चिदेतच्छुतं पार्लर तृवयैकग्रण चेतना। कच्चिदशज्ञानसंमोह: प्रनष्टस्ते धनंजय॥७२॥ हे पार्थ! यह तूने एकाग्रचित्त से सुना? हे धनंजय! इस अज्ञानके कारण जो मोह तुझे हुआ था वह क्या नष्ट हो गया?७२
अर्जून उबाऊ नष्टोमोह: स्मृतिर्लबधा त्वत्प्रसादान्याच्युत। स्थितोस्मि गतसन्देह: करिष्ये वचनों तब ॥७३॥
अर्जून बोले हे अछूत।य