पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२३९

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बाइयां बम्बाद संचालन पावेगा। जो तपस्वी नहीं है, जो भक्त नहीं है, जो सुनना नहीं चाहता और जो मेरा द्वेष करता है, उससे यह (ज्ञान) तू कभी न कहना। य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वमिधास्यति । भक्ति मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ॥६८॥ परंतु यह परम गुह्य ज्ञान जो मेरे भक्तोंको देगा वह मेरी परम भक्ति करनेके कारण निःसंदेह मुझे ही ६८ न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः । भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥६९।। उसकी अपेक्षा मनुष्योंमें मेरा कोई अधिक प्रिय सेवक नहीं है और इस पृथ्वी में उसकी अपेक्षा मुझे कोई अधिक प्रिय होनेवाला भी नहीं है। अध्यष्यते च य इमं धयं संवादमावयोः । ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति मे मतिः ।।७।। हमारे इस धर्म्यसंवादका जो अभ्यास करेगा, वह मुझे यज्ञद्वारा भजेगा, ऐसा मेरा मत है। अमावाननसूयश्च शृणुयादपि यो सोऽपि मुक्तःशुाल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम् ।।७१।। और जो मनुष्य देवरहित होकर श्रद्धापूर्वक केवल सुनेगा वह भी मुक्त होकर पुण्यवान जहां बसते हैं उस शुभलोकको पावेमा। ७० नरः।