पहला अध्याय : अर्जुनविवादलोग झनेवाले हमलोग इस पापसे बचना क्यों न जानें? ३८-३९ कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः । धर्मे नष्ट कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥४०॥ कुलके नाशसे सनातन कुलधर्मोका नाश होता है और धर्मका नाश होनेसे अधर्म समूचे कुलको डुबा देता है। ४० अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः । स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥४१॥ हे कृष्ण ! अधर्मकी वृद्धि होनेसे कुलस्त्रियां दूषित होती हैं और उनके दूषित होनेसे वर्णका संकर होता है। ४१ संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥४२।। ऐसे संकरसे कुलघातकका और उसके कुलका नरकवास होता है और पिंडोदककी क्रिया से वंचित रहनेके कारण उसके पितरोंकी अधोगति होती है। ४२ दोषरेतः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः । उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥४३॥ कलघातक लोगोंके इस वर्णसंकरको उत्पन्न करने- वाले दोषोंसे सनातन जातिधर्म और कुलधर्मोका नाश होता है। ४३ .
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