पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२७

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दूसरा अध्याय: साल्खयोग ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात ब्रह्मविद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'अर्जुनविषादयोग' नामक पहला अध्याय ।

२:

सांख्ययोग . मोहके वश होकर मनुष्य अधर्मको धर्म मानता है। मोहके कारण अर्जुनने अपना और पराया भेद किया, इस भेदको मिथ्या बतलाते हुए श्रीकृष्ण देह और आत्माकी भिन्नता, देहकी अनित्यता और पृथक्ता तथा आत्माकी नित्यता और उसकी एकता बतलाते हैं। मनुष्य केवल पुरुषार्थका अधिकारी है, परिणामका नहीं। इसलिए उसे कर्तव्यका निश्चय करके निश्चित भावसे उसमें लगे रहना चाहिए। ऐसी परायणतासे वह मोक्षकी प्राप्तिको पहुंच सकता है। संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥ १॥