पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२८

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१४ अनासक्तियोग संजयने कहा- यों करुणासे दीन बने हुए और अश्रुपूर्ण व्याकुल नेत्रोंवाले दुःखी अर्जुनसे मधुसूदनने ये वचन' कहे- - २ श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिद विषमे ममुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वय॑मकीर्तिकरमर्जुन ॥२॥ श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन ! श्रेष्ठ पुरुषोंके अयोग्य, स्वर्गसे विमुख रखनेवाला और अपयश देनेवाला यह मोह तुझे ऐसी विषम घड़ीमें कहांसे हो गया ? क्लैब्य मा स्म गमः पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते । क्षुद्रं हृदयदौर्बल्य त्यक्त्वोत्तिष्ठ परतप ॥ ३ ॥ हे पार्थ ! तू नामर्द मत बन । यह तुझे शोभा नहीं देता। हृदयकी पामर निर्बलताका त्याग करके हे परंतप ! तू उठ। अर्जुन उवाच कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन । षुभिः प्रति योत्स्यामि पूजाविरिसूदन ॥४॥ w