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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/३५

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दूसरा अध्याय: सांख्ययोग २१ फिर, यह इंद्रिय और मनके लिए अगभ्य है, विकाररहित कहा गया है, इसलिए इसे वैसा जानकर तुझे शोक करना उचित नहीं है। २५ अथ चैन नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् । तथापि त्वं महाबाहो नैव शोचितुमर्हसि ॥२६॥ अथवा जो त इसे नित्य जन्मने और मरनेवाला माने तो भी, हे महाबाहो ! तुझे शोक करना उचित नहीं है । २६ जातस्य हि ध्रुवो मृत्युभ्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥२७॥ जन्मे हुएके लिए मृत्यु और मरे हुएके लिए जन्म अनिवार्य है । अतः जो अनिवार्य है उसका शोक करना उचित नही है। २७ अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ।।२८।। हे भारत ! भूतमात्रकी जन्मके पहलेकी और मृत्युके पीछेकी अवस्था देखी नहीं जा सकती, वह अब्यक्त है, बीचकी ही स्थिति व्यक्त होती है। इसमें चिंताका क्या कारण है ? २८ टिप्पणी-भूत अर्थात् स्थावर-जंगम सृष्टि । आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन- माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः ।