२० मनासक्तियोग अजन्मा और अव्यय मानता है वह किसे, कैसे मरबाता है या किसे मारता है ? २१ वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि सयाति नवानि देही ॥२२॥ जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रोंको छोड़कर नये धारण करता है वैसे देहधारी जीर्ण हुई देहको त्यागकर दूसरी नई देह पाता है। २२ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥२३॥ इस (आत्मा)को शस्त्र छेदते नही, आग जलाती नही, पानी भिगोता नहीं, वायु सुखाता नहीं। २३ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगत स्थाणुग्चलोऽयं सनातनः ॥२४॥ यह छेदा नहीं जा सकता है, जलाया नहीं जा सकता है, न भिगोया जा सकता है, न सुखाया जा सकता है । यह नित्य है, सर्वगत है, स्थिर है, अचल है और सनातन है। २४ अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । तस्मादेव विदित्वनं नानुशोचितुमर्हसि ॥२५॥