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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/४८

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अनासक्तियोम इन्द्रियाणा हि चरतां यन्मनोऽनु विधीयते । तदस्य हरति प्रज्ञां वायुविमिवाम्भसि ।।६७।। विषयोंमें भटकनेवाली इंद्रियोंके पीछे जिसका मन दौड़ता है उसका मन वायु जैसे नौकाको जलमें खींच ले जाना है वैसे ही उसकी बुद्धिको जहां चाहे खींच ले जाता है। तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।।६८।। इसलिए हे महाबाहो ! जिसकी इंद्रियां चारों ओरके विषयोंमेंसे निकलकर उसके वशमें आ जाती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है । ६८ या निशा सर्वभूतानां तस्यां जाति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।।६९।। जब सब प्राणी सोते रहते हैं तब संयमी जागता रहता है । जब लोग जागते रहते हैं तब ज्ञानवान मुनि स्रोता रहता है। टिप्पणी--भोगी मनुष्य रातके बारह-एक बजे तक नाच, रंग, खानपान आदिमें अपना समय बिताते हैं और फिर सबेरे सात-आठ बजे तक सोते हैं। संयमी सतके सात-आठ बजे सोकर मध्यरात्रिमें उठकर ईश्वर- का ध्यान करते हैं। इसके सिवा भोगी संसारका