तीसरा व्याय:कमयोग रहकर, यंत्रकी तरह कार्य करनेसे उसे घिस्सा नहीं लगता । वह मरनेतक ताजा रहता है। देह अपने नियमके अनुसार समयपर नष्ट होती है, परंतु उसमें रहनेवाला आत्मा जैसा था वैसा ही बना रहता है। यदि यह न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः । मम वानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥२३॥ यदि में कभी अंगड़ाई लेनेके लिए भी रुके बिना कर्ममें लगा न रहूं तो हे पार्थ ! लोग सब तरहसे मेरे बर्तावका अनुसरण करेंगे। २३ उत्सीदेयुरिमे लोका न कुयी कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमा. प्रजाः ॥२४॥ यदि मै कर्म न करू तो ये लोक भ्रष्ट हो जायं; मैं अव्यवस्थाका कर्ता बनू और इन लोकोंका नाश करूं। २४ सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत । कर्याद्विद्वास्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥२५॥ हे भारत ! जैसे अज्ञानी लोग आसक्त होकर कर्म करते हैं, वैसे ज्ञानीको आसक्तिरहित होकर लोक- कल्याणकी इच्छासे कर्म करना चाहिए। २५ न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् । जोषयेत्सर्वकर्माणि बिद्वान्युक्तः समाचरन् ।॥२६॥
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