पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनासक्तियोग कर्ममें आसक्त अज्ञानी मनुष्योंकी बुद्धिको ज्ञानी डांवाडोल न करे, परंतु समत्वपूर्वक अच्छे प्रकारसे कर्म करके उन्हें सब कर्मोंमें लगावे । प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः । अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥२७॥ सब कर्म प्रकृतिके गुणोंद्वारा किये हुए होते हैं। अहंकारसे मूढ़ बना हुआ मनुष्य 'मैं कर्ता हूं' यह मानता है। २७ तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥२८॥ हे महाबाहो ! गुण और कर्मके विभागका रहस्य जाननेवाला पुरुष 'गुण गुणोंमें बर्त रहे हैं यह मानकर उनमें आसक्त नहीं होता। २८ टिप्पती--जैसे श्वासोच्छ्वास आदि क्रियाएँ अपने- आप होती हैं, उनमें मनुष्य आसक्त नही होता और जब उन अंगोंको व्याधि होती है तभी मनुष्यको उनकी चिंता करनी पड़ती है या उसे उन अंगोंके अस्तित्वका भान होता है, वैसे ही स्वाभाविक कर्म अपने-आप होते हों तो उनमें आसक्ति नही होती। जिसका स्वभाव उदार है वह स्वयं अपनी उदारताको जानता तक नहीं; पर उससे दान किये बिना रहा ही नहीं जाता। ऐसी