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अनासक्तियोग हिसाब रखनेवाला भले ही श्रेष्ठ गिना जाय, परंतु झाड़ देनेवाला अपना धर्म त्याग दे तो वह भ्रष्ट हो जायगा और समाजको हानि पहुंचेगी। ईश्वरके दरबारमें दोनोंकी सेवाका मूल्य उनकी निष्ठाके अनुसार कूता जायगा। पेशेकी कीमत वहां तो एक ही होती है। दोनों ईश्वरार्पण बुद्धिसे अपना कर्तव्य-पालन करें तो समानरूपसे मोक्षके अधि- कारी बनते हैं। अर्जुन उवाच अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥३६।। अर्जुन बोले- फिर यह पुरुष बलात्कारपूर्वक प्रेरित हुए की भांति, न चाहता हुआ भी, किसकी प्रेरणासे पाप करता है ? ३६ श्रीभगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विर्घनमिह वैरिणम् ॥३७॥