पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/९६

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अनासक्तियोग आरोपण करके, मनुष्य उसकी झांकीकी आशा रखता who ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'कर्म संन्यासयोग' नामक पांचवां अध्याय । ध्यानयोग इस अध्यायमें योगसाधनके-समत्व प्राप्त करनेके- कितने ही साधन बतलाये गये है। श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफल कार्य कर्म करोति यः । स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ।।१॥ श्रीमगवान बोले-- कर्मफलका आश्रय लिये बिना जो मनुष्य विहित कर्म करता है वह संन्यासी है, वह योगी है । जो अग्नि-